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सन्नाटा / लता सिन्हा ‘ज्योतिर्मय’
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मौन हो चुके प्रेम महल में
सन्नाटे का शोर बहुत है
विरानी यादों की गलियाँ
प्रीत अस्थियों का जमघट है
दिल के टुकड़े बिखेर-बिखरे
हृदय रक्त से मन लथपथ है
श्वान नोचते आत्मिक बल
विश्वास प्रेम का क्षत-विक्षत है
प्रीत की अर्थी सजी सुमन से
विरह चिता बन उठी लपट है
दारुण दुख दिये मौन अगन
कल तक उपवन था अब मरघट है
धू-धू कर उठता प्रेम पीड़
भस्म हुआ ज्योतिर्मय तप है
जो गंध टीस हिय फैल रहा
शव स्नेह का अब दुर्गंधयुक्त है।