भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लड़की / सरोज कुमार

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:53, 24 जनवरी 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरोज कुमार |अनुवादक= |संग्रह=शब्द...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भीतर-भीतर भीगी लड़की
ऊपर कितनी सख्त है!

सबकी नजर बचाकर वो
रखती है सब पर कड़ी नजर,
सारे ड़र वो लांघ चुकी
बस एक अकेला अपना डर!

जिसे बहारों ने लूटा हो
ऐसा एक दरख्त है!

अपनी परछाई पर रीझी
फिदा इस कदर अपने पर,
दाँव लगा देगी वो सारा
जीवन अपने सपने पर!

सबसे माया-मोह छोड़
वह अपने पर अनुरक्त है!