भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
स्पर्श / राखी सिंह
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:08, 4 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राखी सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
छुआ ऐसे तुमने
जैसे भौरे ने
छुआ हो गुलाब को
जैसे छुए नाव का तल
नदी के हिलकोरे भरते वक्ष को
किसी सुंदरी के गर्म तलवों तले
रौंदी जाए कार्तिक की ओदा दूर्वा
तुमने चाहा
न हो नुकसान किसी का
न छूटे चिह्न कोई
ये केवल मुझे पता है
स्पर्श छोड़ा है तुमने ऐसे
जैसे सांसो ने खींच रखी हो श्वास
और मना किया हो छोड़ने से।