भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तमाशा / मनीष मूंदड़ा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:39, 21 मार्च 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनीष मूंदड़ा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मेरी गुरबत का तमाशा बना,
मैं खुद को
तलाशता हूँ।
मेरी खुशियों का अलाव बना,
मैं खुद को तलाशता हूँ।
मेरी उड़ानों के पर काट कर
मैं खुद को तलाशता हूँ
मेरी आँखों को नम कर
मैं खुद को तलाशता हूँ
क्यूँ तलाशता हूँ
नहीं खबर मुझे
पर मैं खुद को तलाशता हूँ।