भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मक्खी / लक्ष्मी खन्ना सुमन

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:51, 5 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मी खन्ना सुमन |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लहरा अपने 'पर' मक्खी
उड़ती इधर-उधर मक्खी

हाथ उड़ाते जब उसको
धुनती अपना सर मक्खी

छूट गया जब मीठा तो
हाथ मले उड़कर मक्खी

कानों पास सुनाती है
भिन-भिन अपना स्वर मक्खी

जिस बच्चे का घर गंदा
देती उसको ज्वर मक्खी

हो खाना या हो कूड़ा
कहती खुला न धर मक्खी

'सुमन' बहारें क्या उसको
पेट रही बस भर मक्खी