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मक्खी / लक्ष्मी खन्ना सुमन
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लहरा अपने 'पर' मक्खी
उड़ती इधर-उधर मक्खी
हाथ उड़ाते जब उसको
धुनती अपना सर मक्खी
छूट गया जब मीठा तो
हाथ मले उड़कर मक्खी
कानों पास सुनाती है
भिन-भिन अपना स्वर मक्खी
जिस बच्चे का घर गंदा
देती उसको ज्वर मक्खी
हो खाना या हो कूड़ा
कहती खुला न धर मक्खी
'सुमन' बहारें क्या उसको
पेट रही बस भर मक्खी