भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फ़र्क / कुमार विकल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:36, 8 सितम्बर 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार विकल |संग्रह= रंग ख़तरे में हैं / कुमार विकल }} एक छ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक छोटी —सी बात को लेकर

मैं बहुत रोया

रोने के बाद बहुत सोया

सोकर उठा तो बहुत सोचा

क्या हर आदमी रोता है?

मार्क्स एंगिल्स और लेनिन भी रोये थे|


हाँ ज़रूर रोये थे

लेकिन, रोने के बाद कभी नही सोये थे

अगर वे इस तरह सोये रहते

तो दुनिया के करोड़ों लोग कभी न जाग पाते|