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जी तो मेरा निढाल है साहिब / सुरेश चन्द्र शौक़

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जी तो मेरा निढाल है साहिब

आपको क्यों मलाल है साहिब


आपकी शक्ल का क़ुसूर नहीं

आइने में ही बाल है साहिब


बख़्श दीजे महब्बतें अपनी

ज़िन्दगी का सवाल है साहिब


आपके मुँह पे कोई सच बोले

किसमें इतनी मजाल है साहिब


कौन पुरसाने—हाल है किसका

किसको किसका ख़याल है साहिब


‘शौक़’ से मिल के देखिएगा कभी

आदमी बा—कमाल है साहिब.


मलाल= हिम्मत; मजाल=हिम्मत;पुरसान—ए—हाल=हाल पूछने वाला