भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुकडूँ-कूँ / जहीर कुरैशी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:38, 20 अप्रैल 2021 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुर्गा है एलार्म-घड़ी
बातें करता बड़ी-बड़ी!

तड़के बाँग लगाता यूँ
कुकडूँ-कूँ, भई, कुकडू़ँ-कूँ!

कहता है-जागो भाई,
सुबह कर रही अगुवाई!

सुबह-सुबह यदि सोते हो,
तन में आलस बोते हो!

बात पते की कहता हूँ,
कुकडू़ँ-कूँ, भई, कुकडू़-कूँ!

जो जगते हैं सुबह-सुबह,
उन्हें नहीं आलस का भय!

दिन भर ताजा रहते हैं,
नदियों जैसे बहते हैं!

मैं भी ताजा रहता हूँ,
कुकडू़ँ-कूँ, भई, कुकडू़-कूँ!