भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंतिम बचाव / मंजुला बिष्ट

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:07, 13 नवम्बर 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मंजुला बिष्ट |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बन्धु!
कैसे करोगे मुक़ाबला
अपने पीछे भागती वैचारिक हिंसक भीड़ का

अल्लाओगे तो वे तत्क्षण सजग हो उठेंगे
चीखोगे तो वे मासूम अनभिज्ञ बन जाएंगे
सार्वजनिक मान-मनोवल की तो ख़ैर
वे नौबत ही न आने देंगे

तो फ़िर बचाव क्या है,बन्धु!
अंतिम बचाव !

बचाव वही है
जो बचपन में माँ की मार से बचने के लिए करते थे
उस हिंसक भीड़ के सम्मुख नतशिर हो बैठ जाना!

यदि उसके सारे हथियार लज्जित न भी हों
तो भी तुम्हारे बचने की एक फ़ीसदी संभावना है!

भीड़ में से कुछेक जरूर
या तो तुम्हें छोड़ देंगे
या तुम्हें बख़्सने पर दम्भी हुँकार भरकर प्रशस्ति-पत्र पाएंगे

भीड़ का प्रहार एकमेव होता है
लेक़िन टूटते वे कड़ियों में ही हैं
इसलिए डरो नहीं मुक़ाबला करो,बन्धु!