भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अंतर्वस्त्र / दीपा मिश्रा
Kavita Kosh से
					Sharda suman  (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:20, 18 जुलाई 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीपा मिश्रा  |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अपन उज्जर अंतर्वस्त्रकेँ 
ओ रंगीन कपड़ाक नीचा
झांपिकेँ सुखबैत अछि 
ठीक ओहिना जेना 
अपन इच्छाकेँ
मर्जादाक नीचा
झांपिकेंँ रखैत अछि 
जाहिसँ कहीं किछु
बेपर्द ने भऽ जाए 
कतेको इच्छा 
कतेको मोन 
एहिना नुकायल 
झाँपल 
उपेक्षित रहि जाइए 
कियाक ने स्त्री 
अपन अंतर्वस्त्रकेँ 
ओहिना पसारब सीखए 
मोनमे कोनो भय
कोनो लाज नै राखि 
ओकरा स्वीकार 
करब आवश्यक  
कुंठा रहित 
नव समाजक सृजन 
तखने संभव होयत 
जखैन ओ अपन इच्छाकेँ 
संस्कार आर परंपरासँ 
झाँपब छोड़ि देत
	
	