भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पाणिग्रहण / एकांत श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:47, 25 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव |संग्रह=मिट्टी से कहूंगा धन्...)
जिसे थामा है
अग्नि को साक्षी मानकर
साक्षी मानकर तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं को
एक अधूरी कथा है यह
जिसे पूरा करना है
इसे छोड़ूंगा तो धरती डोल जाएगी ।