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जीवन कथा / संतोष श्रीवास्तव

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छुटपन में साबुन से
बुलबुले उड़ाते
कभी न सोचा था
जीवन एक बुलबुला है

हवा में तैरता
सूरज की किरणों से
सतरंगी हो
भूल भुलैया में
भटकाता
अपने पारदर्शी रूप में
आर-पार की
रंग-बेरंग
दुनिया दिखलाता

वक्त की मौजो में
बहा ले जाता
फिर तेज धूप
हवा के बदले रुख में
टूट जाता

पर टूटने से पहले
दिखला जाता
अपने पीछे आते
नए बुलबुले
इतनी ही
जीवन - कथा रही