भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीवन कथा / संतोष श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:58, 30 मार्च 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
छुटपन में साबुन से
बुलबुले उड़ाते
कभी न सोचा था
जीवन एक बुलबुला है
हवा में तैरता
सूरज की किरणों से
सतरंगी हो
भूल भुलैया में
भटकाता
अपने पारदर्शी रूप में
आर-पार की
रंग-बेरंग
दुनिया दिखलाता
वक्त की मौजो में
बहा ले जाता
फिर तेज धूप
हवा के बदले रुख में
टूट जाता
पर टूटने से पहले
दिखला जाता
अपने पीछे आते
नए बुलबुले
इतनी ही
जीवन - कथा रही