भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पिता / निर्मल आनन्द

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:03, 27 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निर्मल आनन्द |संग्रह= }} <Poem> पिता तुम्हें संधि स्...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पिता
तुम्हें संधि स्वीकार नहीं
तुम्हारा युद्ध कब समाप्त होगा

तुम्हारे झोले से
निकाल लिया है
किसी ने
अमन की पुड़िया को

मैं जानता हूँ
अकबर-राणाँ जैसा
नहीं होगा तुम्हारा इतिहास
क्योंकि
वे राज्य जीतते थे
तुम रोटी जीतते हो ।