भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शायद / रश्मि प्रभा
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:36, 18 अगस्त 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रश्मि प्रभा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आज भीड़ है
सब तुम्हें देखना चाह रहे हैं
तुम्हारा नाम पुकार रहे हैं
बहुत मुश्किल से तुम आगे जा पा रहे हो!!!...
कल ख़ामोशी होगी
दूर दूर तक
तुम्हें कोई आवाज़ सुनाई नहीं देगी
अजनबी निगाहों की छुवन में
तुम यह आज ढूंढोगे!!!
आज सहजता से,
विनम्रता से,
अपनत्व के साथ इनको छू लो,
शायद कल कोई तुम्हें पहचान ले ।