भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उस पार / बुद्धिनाथ मिश्र
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:12, 22 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बुद्धिनाथ मिश्र |संग्रह= }} Category:नवगीत <poem> ::आज चल ...)
आज चल उस पार मांझी !
व्योम से होता जहाँ पर धरा का अभिसार मांझी !
आज चल उस पार मांझी !
प्रात की पहली किरन खिलती जहाँ उल्लास में भर
रात की सित-कालिमा ढलती जहाँ निश्वास ले कर
तरुनि ऊषा नित किया करती जहाँ सिंगार मांझी !
आज चल उस पार मांझी !
सुरभि की उस ग्रंथि तक जिसमें भ्रमर के गान बंदी
अलस कलिका के अधर पर तृप्ति की मुस्कान बंदी
पल रहा जिस कूल पर हो प्यार पारावार मांझी !
आज चल उस पार मांझी !
छू न पाएँ जिस क्षितिज को विश्व की कटु विषमताएँ
राख हो जाएँ न पल पल जल उमंगों की चिताएँ
हो जहाँ पर चिर-मिलन की कल्पना साकार मांझी !