भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उन्हत्तर पूरे / शील
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:10, 30 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार= शील }} <poem> सोचा नहीं कभी आयु की आय की रक्त में राष...)
सोचा नहीं कभी आयु की आय की
रक्त में राष्ट्र का तेज अगोरे।
मानव मुक्ति की मुक्ति विशेष से
पूरने हैं अभी कार्य अधूरे।
आज का विश्व विषाद का विश्व है
तोड़ने होंगे विवाद कँगूरे।
इन्दुमती की प्रबोधनी कोख में
जन्मा किए हैं उन्हत्तर पूरे।
रचनाकाल : 15 अगस्त 1983