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गीत-संगीत / केशव शरण

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एक शोर है
मेरे भीतर
एक शोर है
मेरे बाहर
गाँव-गाँव
नगर-नगर

मेरे भीतर का शोर
अगर एक कान चाहता है
जो इसे सुने
तो मेरे बाहर का शोर
मेरे कान फ़ोड़ता है
मेरा ध्यान तोड़ता है
कि मेरे भीतर का शोर
गीत न बुने

बहुत चाहता हूँ
कब वह पल आए
मेरे भीतर का शोर
एक गीत में बदल जाए
बाहर का शोर जिसमें
संगीत-सा ढल जाए