भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भुनगा / शमशाद इलाही अंसारी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:46, 21 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शमशाद इलाही अंसारी |संग्रह= }} Category: कविता <poem> एक भ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक भुनगा
मकडी़ के जाल में फ़ंसा
उससे मुक्त होने की
तीव्र प्रक्रिया में
निरंतर प्रयत्न करता
थक कर चूर हो जाता
कुछ क्षणों के लिये शांत

फ़िर कोई नयी
आशा की किरण जगमगाती
पुन: शक्ति संजोता
स्वतन्त्र होने का प्रयास करता
संघर्ष करता
जाल से मुक्त होने को|

लेकिन मकड़ी, जिसका अस्तित्व
उससे बहुत विशाल
सहसा प्रकट होती

अपने शक्तिशाली
पंजों में पकड़ कर
उसे विवश कर
उसका खून रूपी अर्क पीकर
विलुप्त हो जाती
किसी दूसरे भुनगे की
प्रतीक्षा में।


रचनाकाल : 30.08.1987