भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
डस्ट-बिन / हरजेन्द्र चौधरी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:50, 24 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरजेन्द्र चौधरी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> फिर से होगी…)
फिर से होगी उल्टी
अभी कसर है
-ऐसा लगता है कभी-कभी
एक कविता लिखने के बाद
एक कविता और दूसरी कविता
लिखने के बीच
बड़ी उबकाऊ उपमाएँ
बड़े नीच बिम्ब
बड़े जुगुप्सक पद-अर्थ
पेट की मरोड़ या बलग़म के चक्रवात की तरह
उठते हैं
कहीं बहुत भीतर से
कविताओं का यह पुलिन्दा
सड़ांधता हुआ 'डस्ट-बिन' है
मेरा
और
मेरे युग का...
रचनाकाल : 1999, नई दिल्ली