भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

असफलता / अजित कुमार

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:14, 1 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नीले नभ में
भूरे बादल का
पैबन्द
लगाया था जो तूने
छितर गया ।
मँडराते हैं कौवे ।
सब तन खा चुकने पर—
मिल ही जायगी
उनको
बादल की भीगी हुई पलक के नीचे
ठिठकी, नन्हीं पुतली—
टाँक उसे देंगे
नभ के अजेय वक्षस्थल पर
तब भी
वह
मौन शांत अविभाजित होगा
विजय-दर्प से तना ।