भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भजन बिना नरफीको / मीराबाई

Kavita Kosh से
सम्यक (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:47, 10 दिसम्बर 2006 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकार: मीराबाई

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*

आज मोहिं लागे वृन्दावन नीको।।
घर-घर तुलसी ठाकुर सेवा, दरसन गोविन्द जी को।।१।।
निरमल नीर बहत जमुना में, भोजन दूध दही को।
रतन सिंघासण आपु बिराजैं, मुकुट धरयो तुलसी को।।२।।
कुंजन कुंजन फिरत राधिका, सबद सुणत मुरली को।
"मीरा" के प्रभु गिरधर नागर, भजन बिना नर फीको।।३।।