भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
औरतें / चंद्र रेखा ढडवाल
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:14, 13 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्र रेखा ढडवाल |संग्रह=औरत / चंद्र रेखा ढडवाल }}…)
बाहर पंच भूतों से बने शरीर को
पाँच तत्वों में विलीन कर देने के
उपक्रम में अति व्यस्त
इस अंतिम घड़े
बहुत-बहुत सार्थक करते
दिखते मर्द
भीतर/बीते पल-पल को
सिमरन-माला के
मोतियों-सा घुमातीं
कुछ मन
कुछ लोक निभातीं
दहाड़ें मार-मार कर
रोती औरतें.