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मुसाफ़िर / विष्णु नागर

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मैं हूँ मुसाफ़िर चार बार आऊंगा चार बार जाऊंगा शुक्र की सुबह आया हूँ आज की रात चला जाऊंगा

मुसाफ़िर से कहो, बैठ तो क्या बैठेगा कहो, चाय पी तो पानी पी कर जायेगा कहो, बता अपना हाल तो तम्बाखू मसलने बैठ जायेगा

मुसाफ़िर से कहो तू बैठता नहीं तू चाय नहीं पीता तू बात नहीं करता तो जा देख दूसरी जगह यह मुसाफ़िरखाना नहीं यह है गृहस्थ का घर

इन्हीं बातों पर मुसाफ़िर को गुस्सा नहीं आता यही बातें उसे प्यारी लगती हैं यही बातें उसे यहाँ ले आती हैं यही बातें उसे बीमार पत्नी के मरने पर रोने देती हैं.