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सुख / लीलाधर मंडलोई
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घर की छत पर
धूल-धक्कड़ के अटते ही
पिता साफ-सफाई में
जुट जाते थे
गुजरते लोगों की
आंखों के सुख के लिए
वे बारिश का इंतजार नहीं करते थे