भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बादल / शिवराज भारतीय

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:51, 6 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवराज भारतीय |संग्रह=महकता आँगन / शिवराज भारती…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


नभ में छाए काले बादल
कहीं लाल कहीं भूरे बादल।
उमड़-घुमड़ कर आते बादल,
दिन को रात बनाते बादल।

पानी भरकर लाते बादल,
धरती पर बरसाते बादल।
सूखे बाग-बगीचों को फिर,
हरा-भरा कर जाते बादल।

कभी रूठकर जाते बादल,
और कभी तरसाते बादल।
हलवाहों को दुःखी देखकर,
झट पानी बरसाते बादल।

आ रे बादल ! प्यारे बादल,
सबका मन हरषा रे बादल !
सूखी धरती हरी-भरी कर,
तू भी तो इठला रे बादल !