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अंतिम बचाव / मंजुला बिष्ट

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बन्धु!
कैसे करोगे मुक़ाबला
अपने पीछे भागती वैचारिक हिंसक भीड़ का

अल्लाओगे तो वे तत्क्षण सजग हो उठेंगे
चीखोगे तो वे मासूम अनभिज्ञ बन जाएंगे
सार्वजनिक मान-मनोवल की तो ख़ैर
वे नौबत ही न आने देंगे

तो फ़िर बचाव क्या है,बन्धु!
अंतिम बचाव !

बचाव वही है
जो बचपन में माँ की मार से बचने के लिए करते थे
उस हिंसक भीड़ के सम्मुख नतशिर हो बैठ जाना!

यदि उसके सारे हथियार लज्जित न भी हों
तो भी तुम्हारे बचने की एक फ़ीसदी संभावना है!

भीड़ में से कुछेक जरूर
या तो तुम्हें छोड़ देंगे
या तुम्हें बख़्सने पर दम्भी हुँकार भरकर प्रशस्ति-पत्र पाएंगे

भीड़ का प्रहार एकमेव होता है
लेक़िन टूटते वे कड़ियों में ही हैं
इसलिए डरो नहीं मुक़ाबला करो,बन्धु!