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आओ / जगदीश गुप्त
Kavita Kosh से
याद पिछली चाँदनी रातें करें आओ !
अनकहे स्वीकार सौगातें करें, आओ !
भोर होते ज़िन्दगी से जूझना होगा,
रात है, कुछ प्यार की बातें करें, आओ !