भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उलटवासी / निरुपमा सिन्हा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने देखा है
उन स्त्रियों को
जो बेचती है
सिन्दूर चूड़ी

और बिंदी के
रंगीन पत्ते
पति विहीन होते हुए भी

उन्हीं के आस पास
टहलती ऐसी
औरतों को भी
जो कर नही पाती
रंगों से प्रेम
ओढ़ नही पाती प्यास
और
सफेद कपड़ों की व्यवसायी हैं
उलटवासी प्रथा की
प्रवर्तकों से कटी
वो
महिला समुदाय
आँचल का कोना दबा
रोज़ देखता है
नियति के बदल जाने का
स्वप्न
हाथ पर धरे हाथ!!