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किताब / अम्बिका दत्त
Kavita Kosh से
बिना जिल्द के बंधी हुई
पन्ने-पन्ने बिखरी हुई थी वह
शहनाई की चिनचिनाहट थी उसमें
रोशनियों का आफताब थी वह
कई सारे सवालों की माँ थी
कई सारे जवाब थी वह
मैंने उससे कहा-
जरा, एक बार और चूमो तुम मुझे
सचमुच !
एक अच्छी किताब थी वह।