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ख़त-दो / अवतार एनगिल
Kavita Kosh से
अरी ओ, नटखट लड़की!
चाहे जब चली आना
इस लम्पट पुरुष के
गले लग जाना
जब-जब तुम
प्रेयसी बन आओगी
इस प्रेमी को
अपना ही सपना
देखते हुए पाओगी
जब आना
बिना बताये
अपनों से कैसी औपचारिकता?