घुटन / शरद कोकास
घुटन की लिजलिजी उंगलियों में
दम घोंट देने की शक्ति शेष है
बन्द हैं ताज़ी हवा के तमाम रास्ते
उमस भरे कमरे में लटका है
उदास हवा का एक पोर्टेªट
बताया जा रहा है इन दिनांे
बहुत मुश्किल काम है
तेज़ हवाओं में साँस लेना
विज्ञान के गारे से
धर्म की ईंटें जोड़कर
खड़ी की जा रही हैं चारदीवारियाँ
घुटन से मरने वालों के लिए
आबाद किए जा रहे हैं क़ब्रिस्तान
नौजवानों को अफ़सोस है
अपने पैदा होने पर
बेबस माएँ खुद घोंट रही हैं
पैदा होने से पहले
बेटियों का गला
बूढ़े ईर्ष्या कर रहे हैं
भीष्म को प्राप्त वरदान पर
इधर कसाव बढ़ता जा रहा है
घुटन की उंगलियों का
छटपटा रहे हैं बुद्धिजीवी
छुपा रहे हैं शर्म के दाग
सुविधाओं के रंग-रोगन से
आसमान की ओर उठी
अनगिनत आँखों में
बादलों का कोई अक्स नहीं है
उपग्रहों के ज़रिये
आँखों व कानों तक
पहुँचाई जा रही है
घुटन दूर हो जाने की अफवाह
गूँज रहे हैं मंजीरों के साथ
मन्दिरों में
दुनियावी दुखों से मुक्ति के उपाय
इधर मौत की ख़बर को
आत्महत्या का रंग दिया जा रहा है
अब घुटन
दरारों और झरोखों से निकलकर
सारी दुनिया पर छाने की कोशिश मंे है
मैं इस कोशिश के खि़लाफ़
दरवाज़ा तोड़कर बाहर निकलना चाहता हूँ
तेज़ हवा पर सवार धूल से लड़ना चाहता हूँ
घुटन के हाथों मारे जाने से बेहतर है
ताज़ी हवा की खोज में
वास्कोडिगामा हो जाना।
-1994