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जंगल / केदारनाथ अग्रवाल
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जंगल
जमीन को जकड़े
षट्मुख षड्यंत्र से
शासन करता है।
आग का सूरज
सुबह से शाम तक
जंगली शासन का
रहस्य भेदन करता है।
हत्याओं के औचित्य में
भरपेट खाए-अघाए
हिंसक पशु
डकारते हैं।
जानलेवा जंगल से
बचने के लिए आदमी
मंत्रियों की काँख में
शरण तलाशते हैं।
रचनाकाल: ०६-०७-१९७९