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तुम्हारा नाम / वाज़दा ख़ान
Kavita Kosh से
बारिश के छोटे-छोटे
सैकड़ों टुकड़े
बटोरे हैं मैंने साल भर
उन टुकड़ों पर नाम लिख-लिखकर
तुम्हारा धरती हूँ झील की कोख में
झील जिसे मैं लाई हूँ उधार
आसमान से
भर जाएगी झील
तुम्हारे नाम लिखे बारिश के
टुकड़ों से
तो लौटा दूँगी उसे
फिर माँगकर लाऊँगी नई
झील
चलता रहेगा यह क्रम अनवरत सदी के
मुहाने से
अन्तिम द्वार तक ।