भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धरती / ओम पुरोहित कागद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धरती !
तूं कदै‘ई करती
सिणगार
बेसुमार:
कूमटै
खेजड़ी
बोअटी ऊपर होंवता
हर्या काच्चा पŸाा
जाणै कचनार!
थारी निजरा सामी
होयो है अनाचार
बता!
कुण राखस री बकरी
चरगी
थारां हरियल संसार?