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फागुन /राम शरण शर्मा 'मुंशी'
Kavita Kosh से
रंग भरी
दिशाएँ
हरी, लाल, पीली ....
कुछ रुकी
हवाएँ
अलस गात, ढीली ...
चली कहीं
पिचकारी
बही धार, गीली...
फागुन में
कसक उठी
(फिर ...)
मन की कीली ... !