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मरुथल (कविता) / अज्ञेय

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काल की रेती पर
हमारे पैरों के छापे?
हमीं तो हैं बिखरे बालू के कण
जिन पर लिखता बढ़ जाता है काल

अपने पैरों के छापे-सरल, गूढ़-
अर्थ-भरे, नियति-गर्भ।
फाल्गुन शुक्ला सप्तमी