भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैंने रास्ते में सारे दिन खो दिए / हब्बा ख़ातून / शाहिद अंसारी
Kavita Kosh से
मेरे दोस्त, ये जवानी बेकार है,
मैंने रास्ते में सारे दिन खो दिए ।
हम क्यों पैदा हुए थे ?
हम क्यों नहीं मरे ?
ये इतने सुन्दर नाम क्यों ?
हमें फ़ैसले का दिन का इन्तज़ार करना चाहिए ।
और मैंने रास्ते में सारे दिन खो दिए ।
दुनिया की रीत एक बेमानी आँधी है
मैंने एक मुश्किल तक़दीर पाई
और मैंने रास्ते में सारे दिन खो दिए ।
बहुत-सी बुलबुलें चमन में आईं
और उन्होंने अपने खेल खेले,
फूलों ने बाग़ छोड़ दिए
ताकि बुलबुलों को जगह मिले
और मैंने रास्ते में सारे दिन खो दिए ।
मेहरबानी करके मुझे उस दिन से बचाना
जिस दिन दोज़ख़ की आग जलेगी
हब्बा ख़ातून तुम्हें बुलाएगी
और मैंने रास्ते में सारे दिन खो दिए ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : शाहिद अंसारी