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यात्रा / कुमार विकल
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घर से यात्रा पर निकला
अपने सारे दुखों को
एक सन्दूक मे बन्द कर
कन्धों पर विश्वासों का एक झोला धर
यात्रा से लौटूंगा तो
झोला सुखों से भर कर लाऊंगा
घर-परिवार, प्रियजन
गली-मौहल्ले के लोगों में बाँटूंगा
लेकिन जब
यात्रा से लौटकर
घर आया
झोला खाली का खाली था
हाँ, दु:खों के सन्दूक को
पहले से कहीं अधिक भारी पाया
लेकिन मैं ये दु:ख
अकेले ही क्यों सहूँ
सन्दूक को आराम से खोलूंगा
और सारे अतिरिक्त दु:ख
घर-परिवार, प्रियजन
गली-मौहल्ले में बाँट दूंगा ।