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रोटी / ज्योति रीता
Kavita Kosh से
रोटी का कभी कोई इतिहास नहीं रहा
परंतु रोटी हमेशा से रही
भूख के ज्वार को शांत करने का माध्यम
हमेशा से रोटी ही थी
रोटी ही थी
जो चांद को गोल
और प्रेयसी के बिंदी को गोल बताती थी
सिंधु घाटी सभ्यता की तरह
रोटी कभी समाप्त नहीं हुई
यह हर घर की रसोई में
उलट-पुलट होकर
पकती- फूलती रही
यह हर व्यंजन के साथ परोसी गई
कभी घी से चुपड़ी
कभी कड़ाही में तली गई
बचपन में दूध रोटी
बड़े हुए तो सब्जी रोटी
हर शय में यह संग रही
दुनिया रहे ना रहे
रोटी रहेगी
रोटी कभी इतिहास में
कभी इतिहास में रोटी दर्ज नहीं होगी!