लिली / एम० के० मधु
उसकी बैलकनी पर
गमले में कैक्टस और लिली के पौधे
साथ-साथ सजे हैं
मेरी खिड़की से यह साफ़-साफ़ दिखता है
कैक्टस की विशालता के बीच
लिली का पौधा दब सा गया है
किंतु जब कभी फूल उसमें दिख जाता है
मेरे अन्दर एक पूरी पृथ्वी
अपनी धुरी पर घूम जाती है
अपनी खिड़की पर खड़े-खड़े
मैं अन्दर-अन्दर
खंडित होने लगता हूं कभी-कभी
जब हवा के झोंके में
कैक्टस के कांटे से टकरा-टकरा कर
लिली तार-तार बिखर जाती है
अपनी खिड़की पर खड़े-खड़े
मैं कभी-कभी बहुत भींग जाता हूं
जब उसकी बैलकनी पर छितराया
छोटा सा, नन्हा सा आकाश
कारण या अकारण गीला हो जाता है
उसकी बैलकनी के गमले
और भींगे उसके नन्हे आकाश से
मेरा क्या रिश्ता है
यह मैं नहीं जानता हूं
किंतु ऐसा जब कभी होता है
मैं पृथ्वी की गति में
दौड़ने लगता हूं
और उसके आकाश को
बांहों में भरने का
एक कठोर दुःसाहस करता हूं
महीनों बाद दौरे से लौटकर
मैं अपने घर आया हूं
अपनी खिड़की पर फिर खड़ा हूं
सामने की बैलकनी
अपने पूरे वजूद के साथ कायम है
किंतु लिली नहीं है
उसके गमले और सूखे ठूंठ पर
कैक्टस की विशाल शाखाएं काबिज हैं
डायनासोर की तरह।