भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वह क्षण / गोबिन्द प्रसाद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


जाते हुए
मैं देखता रहा
उसकी आँखों में
और वह सोचती रही
कि उन हाथों में ऐसा क्या है
-यूँ खिलते रहते हैं सपने में
जागरण की तरह!