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वह क्षण / गोबिन्द प्रसाद
Kavita Kosh से
जाते हुए
मैं देखता रहा
उसकी आँखों में
और वह सोचती रही
कि उन हाथों में ऐसा क्या है
-यूँ खिलते रहते हैं सपने में
जागरण की तरह!