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सच्चाइयाँ / विजय किशोर मानव
Kavita Kosh से
मेरी अपनी अलमारी में
ऊपर के खाने में
पीछे कोने में रखा-
कागज का एक पुराना अधफटा टुकड़ा
किसी और की लिखावट का,
किताबों के बीच
न दिखे, इस जतन से रखी डायरी
और उसमें
पंखुरी-पंखुरी हो गया फूल,
पोटली में
पिता का लिया
कर्ज चुकाने के बाद
हासिल हुए-इंदुलतलब रुक्के
क्यों डराते हैं मुझे?
पत्नी और बच्चों के
अलमारी छूने पर
क्यों खीजने लगता हूं मैं?
मुझे पता ही नहीं लगा
कब डर बन, गईं
मेरी निजी सच्चाइयां