भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सरकार / हरिओम राजोरिया
Kavita Kosh से
सरकारी उपक्रम हो गए बेकार
इन्हें बेचे नहीं तो क्या करे सरकार
क्या-क्या याद रखे
कहाँ-कहाँ जाए
फिर भी पता कर रही है सरकार
सरकार को पता चला है कि
सरकार को कुछ पता नहीं है
सरकार का काम सरकार चलाना है
सरकार चल रही है
चलती ही चली जा रही है
आपनी चाल से चल रही है
करोड़पतियों के साथ चल रही है
कितने लोग पीछे छूट गए
कितने गिरते-पड़ते-हाँफते
सरकार के पीछे-पीछे दौड़ रहे हैं
सरकार मुड़कर नहीं देखती
सरकार सरकार होती है
सरकार सरकार की तरह से काम करती है
चलती ही चली जा रही है सरकार
पता नहीं, कहाँ जा रही है सरकार ?