भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सलाह / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आहिस्ता बोलिए
कोई सुन लेगा

कुछ लोग दुखी हैं कि बाक़ी लोग ज़िन्दा हैं

घोड़े जो खड़ी फ़सलें रौंदते हुए निकल गए थे
फिर लौट रहे हैं

हवा धीरे-धीरे बिखेरती जा रही है राख
राख के ढेर में छिपी हुई आग

अफ़वाहों से बचिए

कुछ लोगों का ख़याल है
यह आबादी हिंस्र पशुओं में तब्दील होने वाली है

आप हँसे, आपका अधिकार है
मगर इस तेज़ बारिश में बाहर न निकलें
यह मेरी सलाह है।