भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सूम / मुंशी रहमान खान
Kavita Kosh से
सूम लक्ष्मी पाय कर नहीं भजैं हरिनाम।
उनका ईश्वर द्रव्य है नहीं दान से काम।।
नहीं दान से काम पेट भर अन्न न खावैं।
करैं दान कहिं भूल कर घर बैठे पछितावैं।।
कहैं रहमान सूम धन खैहैं शैतान मचावैं धूम।
द्यूत सुरा अरु बुरे कर्म में सब धन नाशै सूम।।