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अकाल नेह का / मधु आचार्य 'आशावादी'
Kavita Kosh से
उससे था
नेह का रिस्ता
शत प्रतिशत सच्चा
किंतु बात-बात पर देनी
होती थी सफाई
इससे रिस्ते में
बड़ी भारी आंच आई
जैसे नेह में मिल गई हो रेत
मिलती जा रही हो रेत
फिर कैसे जिंदा रह सकता है-
रिस्तों में प्रेम
आज के इस युग में
रिस्तों में गिर चुकी है रेत
जीवन में आ बैठा है-
नेह का अकाल।
अनुवाद : नीरज दइया