भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अगर पिता होते / ज़िन्दगी को मैंने थामा बहुत / पद्मजा शर्मा
Kavita Kosh से
अगर पिता होते
रूठ जाती तो मनाते
खाना न खाती तो खिलाते
नींद न आती तो सुलाते
माँ को कहा करते थे
'बेटियाँ ईश्वर का आशीर्वाद होती हैं
इनका जी नहीं दुखाया करते
भूखे नहीं सुलाया करते
जिस घर में बेटियाँ भूखी सोती हैं
वहाँ देवताओं का लगता है श्राप
वे ही पोंछती हैं माँ-बाप के आँसू’
सुनकर माँ सो जाती चैन की नींद
अचानक पिता गए हमारे बीच से
तब से मैं रूठने की बात पर भी नहीं रूठती
जैसा भी खाना बने खा लेती हूँ
माँ को नींद नहीं आती
गोलियाँ भी हो चुकी हैं बेअसर
काश! पिता होते
माँ की आँखों में होती सुख की नींद
न मरता मेरा बचपन
समय से पहले
अगर पिता होते