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अनुभव हुए प्रयाग-से / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
हमने जब-जब तुम्हें छुआ
अनुराग से
साँसों के सब अनुभव हुए प्रयाग से
हुई हर छुवन
उस पल गंगा-स्नान सी
चितवन जिस पल हुई
काम के बान-सी
नहा गयी
मौसम की धूप सुहाग से
बाँहों के घेरे में
छवि के बिम्ब लिये
हमने तुम सँग
मधुमासों के रंग जिये
दमक गये
सुधियों के पल सब आग-से
पोर-पोर में
इच्छा के जुगनू जगे
रस-निर्झर में
खड़े रह गये हम ठगे
अंगों ने
जब छुआ रूप को फाग से