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अेक सौ पैंतीस / प्रमोद कुमार शर्मा

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ना लिख सकै कीं
ना दिख सकै कीं
बै-
अैड़ो रूप बणावै जीवण रो
वौपारी समझै के सुवाद तीवण रो!
 बां सारू भूख री अगन ई साच है
दो अर दो हरमेस ई पांच है
बै भोग अर विलास मांय रच्योड़ा है
पण कीं फकीर
अजै ई बच्योड़ा है
बै ही सत भाखा रो सांभसी
अरे! कदैई तो विस्वत् रेखा लांघसी
जठै :
भाखा रो विश्व-परिवार है
हरेक भाखा मिरतु मांय
जीवण रो आविस्कार है।