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आदमी और आदमी / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
एक आदमी है
जो गर्दन झुकाते-झुकाते
सिर उठाना भूल गया है।
एक और आदमी है
जो गर्दन सहलाते-सहलाते
गला दबाने पर उतर आता है।
दो अपसंस्कृतियां एक साथ
अमरबेल की तरह
यहां
फल-फूल रही हैं।
और इस अमरबेल को
जड़ से उखाड़ फेंकने की
तमाम कोशिशें
अब तक फिजूल रही हैं।